समास की परिभाषा-
अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है।
· समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
· समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
·
वे दो या
अधिक पद एक
पद हो जाते
है।
·
समास की प्रक्रिया
से बनने वाले
शब्द को समस्तपद
कहते हैं; जैसे-
देशभक्ति, मुरलीधर,
राम-लक्ष्मण, चौराहा,
महात्मा तथा
रसोईघर आदि।
·
समस्तपद का
विग्रह करके उसे
पुनः पहले वाली
स्थिति में लाने
की प्रक्रिया को
समास-विग्रह कहते
हैं; जैसे- देश
के लिए भक्ति;
मुरली को धारण
किया है जिसने;
राम और लक्ष्मण;
चार राहों का
समूह; महान है
जो आत्मा; रसोई
के लिए घर
आदि।
·
समस्तपद में
मुख्यतः दो
पद होते हैं-
पूर्वपद तथा
उत्तरपद।
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे- पूजाघर(समस्तपद) - पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) - पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे- पूजाघर(समस्तपद) - पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) - पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
समास के भेद
समास के मुख्य सात भेद है:-
(1)तत्पुरुष समास
(2)कर्मधारय समास
(3)द्विगु समास
(4)बहुव्रीहि समास
(5)द्वन्द समास
(6)अव्ययीभाव समास
(7)नञ समास
(1)तत्पुरुष समास
(2)कर्मधारय समास
(3)द्विगु समास
(4)बहुव्रीहि समास
(5)द्वन्द समास
(6)अव्ययीभाव समास
(7)नञ समास
(1)तत्पुरुष समास :- जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है। ऐसे समास में प्रायः प्रथम पद विशेषण तथा द्वितीय पद विशेष्य होते हैं। द्वितीय पद के विशेष्य होने के कारण समास में इसकी प्रधानता होती है।
जैसे- गुणयुक्त – गुणों से युक्त
जैसे- गुणयुक्त – गुणों से युक्त
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष
(ii)करण तत्पुरुष
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv)अपादान तत्पुरुष
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi)अधिकरण तत्पुरुष
(i)कर्म तत्पुरुष
(ii)करण तत्पुरुष
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv)अपादान तत्पुरुष
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi)अधिकरण तत्पुरुष
(i)कर्म तत्पुरुष या (द्वितीया तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (को) लगे हों। उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
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विग्रह
|
स्वर्गप्राप्त
|
स्वर्ग (को) प्राप्त
|
सिरतोड़
|
सिर (को) तोड़नेवाला
|
(ii) करण तत्पुरुष या (तृतीया तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
|
विग्रह
|
पर्णकुटीर
|
पर्ण से बनी कुटीर
|
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष या (चतुर्थी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ सम्प्रदान कारक के चिह्न (को/के लिए) लगे हों। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
|
विग्रह
|
देशभक्ति
|
देश (के लिए) भक्ति
|
(iv)अपादान तत्पुरुष या (पंचमी तत्पुरुष)- जिसका प्रथम पद अपादान के चिह्न (से) युक्त हो। उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
|
विग्रह
|
देशनिकाला
|
देश से निकाला
|
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष या (षष्ठी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लगी हो। उसे संबंधकारक तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
|
विग्रह
|
विद्याभ्यास
|
विद्या का अभ्यास
|
सेनापति
|
सेना का पति
|
(vi)अधिकरण तत्पुरुष या (सप्तमी तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ अधिकरण के चिह्न (में, पर) लगी हो। उसे अधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पद
|
विग्रह
|
गृहप्रवेश
|
गृह में प्रवेश
|
नरोत्तम
|
नरों (में) उत्तम
|
(2)कर्मधारय समास:-जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है।
पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है।
समस्त-पद
|
विग्रह
|
चरणकमल
|
चरण के समान कमल
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परमानंद
|
परम है जो आनंद
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(3)द्विगु समास:- जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है।
इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है। जैसे-
इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है। जैसे-
समस्त-पद
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विग्रह
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सप्तसिंधु
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सात सिंधुओं का समूह
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दोपहर
|
दो पहरों का समूह
|
(4)बहुव्रीहि समास:-
जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।
समस्त-पद
|
विग्रह
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विषधर
|
(विष को धारण करने वाला (सर्प)
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त्रिलोचन
|
तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव
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तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर- तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि।
(5)द्वन्द्व समास :- जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर 'और', 'अथवा', 'या', 'एवं' लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।
समस्त-पद
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विग्रह
|
रात-दिन
|
रात और दिन
|
सुख-दुख
|
सुख और दुख
|
पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen (-) का प्रयोग होता है।
(6) अव्ययीभाव समास:- अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम इत्यादि।
इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम इत्यादि।
पूर्वपद-अव्यय
|
+
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उत्तरपद
|
=
|
समस्त-पद
|
विग्रह
|
प्रति
|
+
|
दिन
|
=
|
प्रतिदिन
|
प्रत्येक दिन
|
यथा
|
+
|
संभव
|
=
|
यथासंभव
|
जैसा संभव हो
|
(7)नञ समास:- इस समास का पहला पद 'नञ' (अर्थात नकारात्मक) होता है। समास में यह नञ 'अन, अ,' रूप में पाया जाता है। कभी-कभी यह 'न' रूप में भी पाया जाता है।
समस्त-पद
|
विग्रह
|
अनदेखा
|
न देखा हुआ
|
अन्याय
|
न न्याय
|
Ø संधि और समास में अंतर
संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है।
जैसे:- देव+आलय=देवालय।
समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।
जैसे:- माता-पिता=माता और पिता।
संधि को जब अलग करते हैं, तो उसे विच्छेद कहते हैं। जबकि समास में विच्छेद
होता है।
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